kijai kripa ki kor swamini shri radhey

kijai kripa ki kor swamini shri radhey
sweetie radhika

sweetie radhika radhey--radhey

Sunday, July 24, 2011

कृपया अपने नाम में महाराज आदि के बजाय दास या दासानुदास लिखें


इवेंट जय हिंदुत्व-जय भारत पर एक बज्र धूर्त के मायावी परामर्श श्री हरि भक्ति पथ छोड़कर उसकी भक्ति करने से कल्याण होगा कमेन्ट पर उसे मेरा संतुलित एवं सटीक प्रतिउत्तर -मित्रो आपका इसे like करना व सहमति कमेन्ट करना /लिखना  मेरे को संवल प्रदान कर मुझे (मेरे)भक्ति मार्ग निष्ठां -प्रेम में बृद्धि करने में सहाय होगा



-जय सियाराम !!


@चिंतामणि गोस्वामी महाराज जी ... आप भावार्थ समझे बिना अर्थ लगा कर अपने गर्वित वचन झोंक रहे हैं .. जोकि सर्वथा अनुचित एवं भक्तियोग से परे है ! यहाँ स्वीटी राधिका गौतम जी एक व्यक्ति के पूछने पर कि निर्गुण ब्रह्म कि उपासना भी सगुन साकार के सदृश फल दाई है तो निर्गुण ब्रह्म की उपासना क्यों न करें ? ,इसपर स्वीटी राधिका उसे संतुलित रूप से समझाते हुए भक्तियोग की श्रेष्ठता बता रहीं हैं ... यहाँ भक्ति योग को simple(सरल ) एवं easy(शीघ्र ही ग्राह्य ) कह भक्ति योग की अन्य के सापेक्ष सुगमता सिद्ध की है , आप व्यर्थ में ही अपने हठयोग का परिचय दे रहे हैं ! आपको पता है कि हम ब्रजवासी जन जन्म से ही भगवान श्री राधाकृष्ण कि मधुर कृपा से भक्ति योग में डूबे हुए आते हैं -जुड़ना तो सामान्य सी बात है -हम लोग डूबे होते हैं दुर्लभ श्रीजी कृपा में .. और रही आपके भक्ति योग को छोड़ने के परामर्श कि तो आप स्वयं अपने कहे शब्द raskal की भांति ही राक्षस -चांडाल हैं ,जो भक्ति पथ पर आरूढ़ किसी को भक्ति छोड़ने को कह रहे हैं ! इतना स्पष्ट लिखा एवं सम्पूर्ण फेसबुक प्रोफाइल पर -इवेंट की संपूर्ण विवरण में पग -पग पर भक्ति से ओत -प्रोत होने पर भी आप दंभ में चूर अनाप -शनाप बोले जारहे हैं यध्यपि हमारी ओर से कल आपके कमेन्ट को like किया गया था पर आपका मिथ्याभिमान बढ़ गया अतः आपको कुछ कटु भाषा किन्तु  सत्य  आपके कल्याण हेतु लिखी .. कृपया पहले भली भांति भक्तियोग का आश्रय लें फिर बोलें ..
केवल लिखने मात्र से कोई महाराज नहीं होता आप सेवक -दास तो बने नहीं चले सीधे महाराज बनने 
एक बात बताएं राज-तंत्र आज लोक मत में मर गया 
वह कहाँ से पुनः आकर आपको महाराज बना गया ? 
कोन से राज्य के महाराज हो ? किसने बनाया ? 
आपको लज्जा नहीं आती अपने नाम में महाराज लिखने में ? 
क्या दुकान चला रहे हो ठगी की जो महाराज हो कर ऊँचा दिखाना चाहते हो ? 
याद रखें भक्ति-योग में महाराज नहीं दास्य-सेवक-प्रेमी होते हैं ! 
सारी की सारी प्रोफाइल व्यापार गली बनाकर भक्ति योग से हमें दूर करने चला है मायावी ? 
जा अगर भक्ति का कुछ भी अंशांश है तो भगवान के सम्मुख प्रतिज्ञा कर धूर्तता छोड़ने की-
लोगों को मुर्ख बनाने छोड़ने की -अहंकार में मतवाले होने छोड़ने की 
और अपने नाम से महाराज हटा  दास या दासानुदास लिख --
जो भक्तियोग का प्रथम एवं अनिवार्य सोपान है


.. धन्यवाद !

कृपया ध्यान दें कोई अन्य आपको महाराज-स्वामी-गुरु बोले तो चलो मान लिया आपके प्रति उस व्यक्ति में श्रृद्धा भावना है !पर जब आप स्वयं ही अपने आपको स्वामी-महाराज-आचार्य या गुरु बोलेंगे/प्रोफाइल पर नाम में लिखेंगे तो आप केवल धर्मं के नाम पर कुत्सित व्यापार करने वाले हैं ! पुस्तकों से टीप-टीप कर अपनी प्रोफाइल को आत्मा-परमात्मा-भक्ति-प्रेम​ की बातें लिख सीधी-साधी जनता को चेला-चेली बना स्वार्थ सिद्ध करते है ! निश्चित ही आपको इसका फल मिलेगा आज नहीं तो निश्चय कल-जैसी करनी वैसा फल लोग आपको घसीट-घसीट कर आपकी इन्द्रिय स्वामी (गोस्वामी ) की पोल-आप जैसे लालची-स्वार्थी-ठग की पोल खोल आपको स्व- सृजित महाराज सिंघासन से फेंक पूछेंगे और तव सिवा दुर्गति के आपके पास कोई विकल्प नहीं होगा !

जय सनातन धर्मं -जय भक्त-भक्ति-भगवंत-गुरु !!



श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने भी अपने को कभी महाराज नहीं कहा सदैव दास्य भाव प्रीती श्री राधेगोविन्द चरणों में समर्पित की आप को शर्म नहीं आती स्वयं को महाराज लिखने में !
कृपया अपने नाम में महाराज आदि के बजाय दास या दासानुदास लिखें -


जय गौर प्रेमानंदा !!
जय श्री राधेश्याम !!